किस कशमकश में
अपने आप को पाता हूँ मैं,
जो नहीं करना चाहता
वो कर जाता हूँ मैं.
कुछ न कहकर
खूद से मूखर जाता हूँ मैं,
हर मोड़ पे क्यो
खूद को अकेला पाता हूँ मैं.
वो हसीं लम्हें
वो सुहावना सफर
इन्हें कभी भूलाना नहीं चाहता हूँ मैं,
फिर भी उन बातों और वादों से
दूर भाग जाता हूँ मैं.
ए जिंदगी मूझे तू समां ले
मुझे फिर खूल के जीने का चाह दे,
फिर अपने भूलाये शक्स को
जिवित करना चाहता हूँ मैं,
अपने रूह और देह को
फिर मिलाना चाहता हूँ मैं.
No comments:
Post a Comment