ये भूख, ये महामारी
ये छल, ये कपट;
ये घटती हुई दिलदारी
ये नीच दिखाने की झपट.
आन्सुओ से भरा ये मुख
अकेलापन का ये गहरा दुःख;
किसका हाथ थामे हम
किसकी आड़ मैं छिपाए गम.
वक़्त ये चलता ही जा रहा
ख़ुद को चाह कर भी रोक नही पा रहा;
ये मैं किधर जा रहा
किसे मैं तलाश रहा.
कभी आंधी चल जाए
कभी खुशी की लहर आए और घट जाए;
कब कोई बिन कहे रूठ जाए
कब खुशियों की बौछार आए.
अनोखी है ये ज़िंदगी
हँसती भी, रुलाती भी;
जैसे भी है ये मस्त है
थम गया ये, तो मज़ा उध्वस्त है.
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